क्यों इतराता है तू
क्यों इतराता है तू
आशियाना किसी का फूँक कर इतराना क्यों
उसकी उम्मीद का दीया बुझा के इठलाना क्यों
ऊंचे महलों में रहने वालों से उसका है सवाल
मजदूर को बेघर करके बेवजह मुस्कुराना क्यों
ज़िंदा होकर भी मुर्दा है उसको फिर जगाना क्यों
काल को आना है इक दिन उससे घबराना क्यों
खिड़की खोल किसकी इंतज़ार में बैठा है इंसान
इक अनजान सी आहट से खुद को डराना क्यों
जवाब चाहिए तो उसकी आवाज़ को दबाना क्यों
जिसने सत्ता पर बिठाया उसको फिर सताना क्यों
इक उम्मीद से जाता है फरियादी उसकी चौखट पर
क्या है उसका फ़र्ज़ बार-बार उसको याद दिलाना क्यों
छीन कर हाथ से निवाला किसी गरीब को रुलाना क्यों
वक्त नहीं है जिनके लिए उनको घर पर बुलाना क्यों
अपने घर को रोशन करके तेरी बरबादी का जश्न मनाया
पुचकार कर दुश्मन को पास अपने फिर सुलाना क्यों
कितने तीर बाकी हैं तरकश में दुश्मन को बताना क्यों
कामयाबी का जुनून है अगर लक्ष्य से नज़रें हटाना क्यों
क्या याद नहीं कितने सितम ढाये हैं ज़ालिम ज़माने ने
उसकी खुशियों की खातिर आज खुद को मिटाना क्यों