आप कहें तो मैं नास्तिक
आप कहें तो मैं नास्तिक
मैं मंदिर नहीं जाता, मैं आपके चरणों में नहीं झुकता,
मैं मस्जिद नहीं जाता, मैं ऊहा पर नमाज नहीं पढ़ता।
मैं चर्च नहीं जाता, मैं खड़े होकर प्रार्थना नहीं करता।
मैं मंदिर गया, वहां देखा, मुट्ठी भर खाने के लिए लाचारों की भीड़ खड़ी रहती है।
मैं पीर के दरबार में गया, जहाँ मैंने देखा, भूखे बच्चों की छाती फट जाती है।
मैं चर्च गया, वहां देखा, जीवित लोगों की लाशें आपके सामने झुकती हैं।
आपकी रचना की गोद में आज मनुष्य दुर्बल, निर्बल, स्वार्थी, आदतन कोमल है।
नकाब के पीछे राजनीतिक हलकों से लेकर शैक्षणिक हलकों तक आपके साथ खेल रहा है।
अज्ञानियों को पीटना, हिंसा से भाषण भरना और साम्प्रदायिक दंगों का आह्वान करना।
न मैं लेता हूं, न किसीको लेने दूंगा पैसा, मानव मूल्य के लिए।
मैं आपको अपनी छोटी सी झोपड़ी में ढूंढता हूं,
क्या आप सच में मेरे टूटे हुए मंदिर में नहीं हो?
क्या आप हजारों रुपए के बने मंदिर, मस्जिद, चर्च में रहते हैं?
मैंने हजारों रुपये के बने मंडप के बारे में सोचा है।
अगर लोग आपको टूटी-फूटी झोपड़ियों में ढूंढ़ते तो लोग अब गरीब नहीं होते।
