बचपन की यादें
बचपन की यादें
बचपन की यादों में रंगा, वो प्यारा समय,
सपनों की दुनिया में, खोया रहता था मन।
सुनहरी धूप में, दौड़ते थे हम बागों में,
तितली के पंखों से, छूते थे आसमान।
दादाजी की पीठ पर, विद्यालय की यात्रा,
गाँव के खेतों में, हरियाली की चादर।
छोटे-छोटे कदमों से, खोजते थे हम रहस्य,
बचपन के दिन थे, कितने निराले और पवित्र।
मेंढक को छूना, टिड्डों का पीछा करना,
सांप से खेलना, अनजानी सी वो मासूमियत।
नंगे पाँव घूमना, चप्पलें एक तरफ छोड़ना,
विद्यालय के ताड़ पत्तों पर बैठकर, कविताएँ गाना।
दोपहर की धूप में, छिप-छिप कर खेलना,
शिक्षकों की डाँट, माता-पिता की फटकार।
हर सीख में छिपा था, एक नया संसार,
बचपन की यादें, आज भी हैं बहार।
समय की धारा में, बहे वो सुनहरे पल,
बचपन के दिन, दिल में बसी यादों की जल।
आज भी चाहें, जादू की छड़ी घुमाना,
उस पागल बचपन में, फिर से लौट जाना।
