मेरा प्रभु तेरा अल्लाह
मेरा प्रभु तेरा अल्लाह
मेरा प्रभु है एक निराकार, तेरा अल्लाह है नाम महान,
दोनों ही हैं ज्योतिर्मय स्वर, दोनों ही हैं शाश्वत जान।
मैं तुलसी की माला फेरूँ, तू अज़ान से जागे प्राण,
भिन्न प्रतीक, एक ही नश्वर, एक ही शाश्वत, एक विधान।
मैं गीता का पाठ रचाऊँ, तू कुरआन में खोजे ज्ञान,
शब्दों में भिन्नार्थ सजे हों, भाव समान, एक ही जान।
मेरे शिव का नृत्य सुनयना, तेरा रब भी करे निदान,
सृष्टि में जो करुणा फैली, उसका न कोई मुसलमान।
मैं आरती दीप जलाऊँ, तू सज्दे में झुके जहाँ,
दोनों की ही मौन अर्चना, लय में डूबे एक अमान।
तू रोज़ा रख संयम साधे, मैं व्रत रखूँ भगवद् मान,
त्याग की यह ज्योति जली है, आत्मा के उच्च विमान।
क़ाबा की ध्वनि हो या मंदिर की, घंटा बोले या अज़ान,
वेदों की ऋचा हो या सूरह, सब में छिपा एक भगवान।
मैं कहूँ राम, तू कहे रहमान, अर्थ समान, नाद समान,
ध्वनि भले ही रूप बदले, पर अंतर्यामी एक प्रमाण।
धूप जले या लोबान उठे, स्वर एक हो, हो मन भान,
मैं कहूँ ‘ओम’, तू कहे ‘बिस्मिल्लाह’, दोनों में हो एक त्राण।
रक्त नहीं रंग पूछे कोई, आँसू नहीं मज़हब जान,
दर्द की भाषा एक समान, प्रेम बने दोनों की शान।
मस्जिद से मंदिर तक जो पथ है, उसमें पग मेरे तेरे समान,
धूल वही, राह वही, छाँव वही, बस दृष्टि बदले पहचान।
मेरे प्रभु की मूरत सजी हो, तेरे रब की न हो सूरत जान,
पर हृदय में दोनों ही हैं जीवित, यही है शाश्वत अरमान।
बात न हो धर्मों की अब, बात हो केवल इंसान की,
तेरा अल्लाह, मेरा प्रभु — दोनों संतान एक जहान की।
डॉ. रमेन गोस्वामी
