मिलन
मिलन
आसमान भी झुक गया, करने धरा से प्यार,
सुंदर दृश्य वो उभर गया, जैसे आंखें चार।
बिन मां, धरा के यह जहां, लगता है बेकार,
प्रलय कभी धरा पर हो, मचता हा-हाकार।।
बरसाता जल धरा, अंबर लगता प्यारा प्यारा,
जीवन पाकर धरा पर, मन करे जन्म हो दुबारा।
कहीं प्रकृति सुंदर लगे, कहीं इंद्रधनुष सुहाना,
धरती अंबर में बसा है, जीवन जन का सारा।।
अपनी धरा मां के समान, लगती हमको प्यारी,
धन, अन्न, अमृत भरा, सजती जैसे राज दुलारी।
अंबर जन को पुकारता, जब खिलते सितारे,
एक दिन वो आता है जाना हो, प्रभु के द्वारे।।
सलाम करो मां धरा, पाल पोस करती बड़ा,
अंबर देखो छाता लिये, हरदम हम पर खड़ा।
मां माता के सम है, अंबर पिता के है समान,
दूर दृष्टि गोचर हो, फैला मिले वहां तक जहां।।
एक दिन आएगा जब, धरती में समा जाना,
धरती में पैदा हुये है, गाते जीवन का गाना।
चले जाना है दूर फिर, नहीं लौटकर आना,
धरती की छाती है, जिस पर नृत्य दिखाना।।
