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Deepti Gupta

Action Classics Inspirational

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Deepti Gupta

Action Classics Inspirational

समय चक्र की अद्भुत गाथा

समय चक्र की अद्भुत गाथा

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इस सृष्टि के, युग हैं चार

समय के पथ पर, सूत्रधार

समय सदा ही, चलता रहता

हर एक युग की, गाथा गाता


सतयुग की है, बात निराली

चाहूं ओर, फैली खुशियाली

धर्म की गूँजे, हर दम वाणी

खुश होकर यह, कहती नानी


त्रेता में, आते हैं राम

पुरुषोत्तम है, जिनका नाम

पित्र भक्ति की, राह दिखाते

कौन जगत का सच्चा वीर

स्वयं कर्म से, यह समझाते


द्वापर में है, कृष्ण का नाम

ब्रज गोकुल थे, जिनके धाम

धर्म है क्या, यह हमें सिखाया

जब गीता, अध्याय सुनाया


जिस क्षण कृष्ण, गये हरी धाम

तब से कलयुग, का है हर जाम

बुद्धि भ्रष्ट, करे जो सबकी

जिसका अंत, करें प्रभु कल्कि


सबसे सूक्षम, युग है यह

जिसमें हर कोई, करे कलह

प्रेम भाव की, होती हानि

हर कोई लगता, दुश्मन जानी


प्रेम भाव फिर, स्थापित करने

हर दिल को फिर, धर्म से भरने

कल्कि, धरती पर आएँगे

यह विश्वास, जगाएँगे


अधर्म की होती, चादर काली

क्रूर खेले जब, होली विकराली

कृष्ण फिर, लौट कर आएँगे

फिर से बनकर, धर्म सारथि

अर्जुन को विजय, दिलाएँगे


फिर गूंजेगी, धर्म की वाणी

लौटेगी फिर, सब खुशहाली

शंख नाद हो, पेड़ों से जब,

समझो सतयुग, की है आहट


समय चक्र यह, यूँही चलता

अपने संग-संग, सबको छलता

समझे जो यह, भेद निराला

मिले उसीको, ब्रज का ग्वाला


सखा रूप में, गुरु रूप में

या मंदिर के, ईश रूप में

मन में बस जाए, बन कर आस

आस को मिल जाए, फिर विश्वास


इस विश्वास की, कच्ची डोरी

पार करे फिर, हर वैतरणी

लेकर प्रभु के, हाथ का साथ

जिसमें मिल जाए, हर एक श्वास

जिसमें मिल जाए, हर एक श्वास !


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