STORYMIRROR

Deepti Gupta

Abstract

4  

Deepti Gupta

Abstract

तूलिका

तूलिका

1 min
392

तूलिका मेरी नयी नयी

उठती गिरती रहती है

टूटे फूटे शब्दों में

कितनी बातें कहती हैं


सृष्टि में नव सूर्य किरण

पहली बार जब चमकी थी

उसी एक अमूल्य से क्षण में

भारत भूमि दमकी थी


ज्ञान चक्षु की नज़रों से

फूटा ज्ञान का अद्भुत स्त्रोत

गुंजायमान वेदों ने

किया धरा को ओत प्रोत


इन गूंजते शब्दों को

अब तूलिका मेरी कहती है

वर्णों की यह बहती नदिया

सबके दिल में रहती है।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract