तूलिका
तूलिका
तूलिका मेरी नयी नयी
उठती गिरती रहती है
टूटे फूटे शब्दों में
कितनी बातें कहती हैं
सृष्टि में नव सूर्य किरण
पहली बार जब चमकी थी
उसी एक अमूल्य से क्षण में
भारत भूमि दमकी थी
ज्ञान चक्षु की नज़रों से
फूटा ज्ञान का अद्भुत स्त्रोत
गुंजायमान वेदों ने
किया धरा को ओत प्रोत
इन गूंजते शब्दों को
अब तूलिका मेरी कहती है
वर्णों की यह बहती नदिया
सबके दिल में रहती है।
