शंख नाद है धर्म युद्ध का
शंख नाद है धर्म युद्ध का
हाथी घोड़े, हैं सजे
रण में गूँजे, शंख का नाद
ले भाले, इन हाथों में
सेना करती, युद्ध आगाज़
हृदय में भर लो, अब अंगार
याद करो, गीता का सार
अत्याचार का, करने अंत
तेज करो, तलवार की धार
टूट पढ़ो, यूँ शत्रु पर
जैसे माँ काली, का वार
नभ की तुम, बनो दामिनी
करने हर शत्रु, का संहार
यही धर्म है, यही सही
अन्याय कभी, सहें नहीं
सदा जो तत्पर, सत्य के पथ पर
बनता सच्चा, वीर वही !
