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Deepti Gupta

Abstract Classics

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Deepti Gupta

Abstract Classics

जीवन चक्र

जीवन चक्र

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धरती के, धरातल पर

कितने पंछी रहते हैं

अपने अपने गीत सुना कर

जीवन गाथा कहते हैं


संध्या का ढलता, सूरज जब

धरती पे उतर कर आता है

जीवन की इस डोर का धागा

रात्रि को, थमा कर जाता है


सुख और दुःख और रात और दिन

जीवन के सच्चे मोती हैं

इनके स्पर्श से ही तो जलती

इस जीवन की ज्योति है


गौधूलि के संग, ज्यों देखो

रंग उतरते हैं, नदियों में

वैसे ही सदा रंग बिरंगे

फ़ैलें जीवन की सदियों में


फीका पड़े न कोई कोना

इस पावन से जीवन का

वर्षा की बौछार से महके

कोना हर मन के तपवन का


यही है मेरे मन की इच्छा

यही है मेरी अभिलाषा

हर प्राणी के मन में हरदम

वास करे अब,

ज्ञान की सच्ची सी भाषा !


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