शब्द - निःशब्द
शब्द - निःशब्द
शब्द, निःशब्द कब हो जाते हैं
मन बस सोच रह जाता है
कभी कभी आँखों का अश्रु
सम्पूर्ण कथा कह जाता है
एक अधूरी छोटी सांस
एक अपूर्ण सी, छोटी मुस्कान
दिल का दर्द बता जाए
कौन यह जाने, कब कहाँ
कोई दिल को ठेस लगा जाए
जाने कितने घावों को
हम दिल में छुपाये, फिरते हैं
दर्द को अपनी बना के शक्ति
खुद से, हर पल लड़ते हैं
दिल के हर एक दर्द की ताकत
हमको लड़ना सिखाती है
जीवन की हर छोटी चोट
जीवन के सत्य सिखाती है
जीवन के इन सत्यों को
हमने धारण किया है मन में
बना के इनको स्त्रोत, प्रकाश का
स्थापित किया है, घर आँगन में
अब इनसे बस, प्रकाश वह फूटे
हर तम को, जो हर ले जाए
ज्ञान सुधा संसार में भर कर
हर जीवन को, यह महकाये
हर चेहरे पर हंसी यह लाये !!!
