कैसे
कैसे
मैं कैसे अनुसरण करूँ,
उन पथ का,
जो कुरीति को सबलता देते है,
कैसे गा लूं वह गीत,
जो मानवता को पथ भ्रमित करते हैं।
कैसे लिख दूं मैं प्रेम गीत,
जब मां वसुंधरा कहार रही,
मानव भुला है जो पथ अपने,
धरा अश्रु कितने बहा रही,
अश्रुपूरित नयन संग,
मैं गीत वेदना के क्यों न लिखूं,
जागे जो मानव का,
गीत क्यों न ऐसा रचूं,
बंदिशों में जो एक नारी,
स्वतंत्रता का अर्थ न समझ रही,
तोड़ने को उसकी जंजीरें,
क्यों न जागरूकता लिखूं,
कैसे बना लूं अपनी कलम को,
उन पदचिन्हों की गुलाम मैं,
भटकाव में हो जहां युवा,
समझ सके जो न कर्तव्य को,
कुछ अवसाद,कुछ मदहोशी,
होश नौजवानी का खो रहा,
आज क्यों न उसे जगाने,
गीत जोश का मैं न लिखूं।।
