क्यों हर बार?
क्यों हर बार?


आज फिर उसका आत्मसम्मान तार-तार हो रहा है,
शायद आज फिर उसे स्वयं की सफाई में कुछ कहना पड़ रहा है,
हर बार उसे अपने होने का क्यों एहसास करवाना पड़ता है?
वो भी उन अपनों का हिस्सा है क्यों हर बार बताना पड़ता है?
क्या दोष है उसका गर वो एक भिन्न कुटुंब से आई है?
अपनेपन एवं प्रेम का एक हिस्सा वो सौगातस्वरुप वो लाई है,
कभी कुछ बोल नहीं पाती तो कभी बहुत कुछ बोल जाती है,
दिल पर अपने सही या गलत होने का पशोपेश बस सहती जाती है,
कुछ अपनों की आँखों की में संतोष देखने की चाह रखती है,
बस इतना सा ही लोभ लिए हर स्वभाव का स्वाद चखती है,
जीवन की हर श्वास को नारी अपने स्वजनों को अर्पण करती है
और कभी जान कर तो कभी अनजाने में अपने हर ख्वाब का तर्पण करती है।।