क्यों अंतस में है अंधियारा
क्यों अंतस में है अंधियारा
घर- घर दीप जल उठे पर अंतस में क्यों है अंधियारा।
है दीपों का त्योहार दीवाली फ़िर मन का दर्पण है क्यों काला।।
दीप सजे है कतारों में पर मन का धागा क्यों है उलझा- उलझा।
हर मुंडेर जगमग जगमग फ़िर आँखों में क्यों है अंधेरा दर्द भरा।।
द्वारों पे लटकी खुशियों की लड़ियाँ पर मन का द्वार है बंद पड़ा।।
लग रहे सभी गले इक दूजे के फ़िर उदासी का अंधियारा क्यों है मेरे चौतरफ़ा फ़ैला।।
घर-घर फुलझड़ियां दमक रही पर मन का बच्चा क्यों विचलित है खड़ा हुआ।
उपहार लिए सब हाथों में फ़िर मन उत्साह से क्यों है वंचित पड़ा।।
साथी संगी सब यार खड़े फ़िर आकर विराना क्यों नज़दीक है डसा।
संबंधों की मिश्री घुल रही सभी के मुख में है फ़िर कड़वाहट का पेड़ा क्यों मेरे मुंह में है आकर धसा।।
