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क्या यह भी होता है पहला प्यार

क्या यह भी होता है पहला प्यार

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याद है

आज भी भीगी सी वो शाम

ढलते सूरज की मीठी रोशनी में

घुंघराले बालों का सुनहरा लगना।


और उनके अंतिम छोर से

पानी की बूंदों का टपकना

जैसे हो ओस के मोतियों का गिरना।


याद है

हवा के झोंकों में

खुले केशों की महक

फिर देर तक

उनका इंतजार करना।


याद है

ओस की बूँदों पर मुड़कर देखना

जहाँ दिखे थे मेरे पाँव के निशान

वहाँ मखमली घास नहीं

चमकीले मुलायम रेत के कण थे,


जो आँधियाँ उठा लाई थीं

सहारा के रेगिस्तान से

जिन्हें केशों में लगे और बिखरे फूल समझ

अंजुरी में समेट उठा लाया था मैं।


याद है

आज भी भीगी सी वो शाम और

फिर वहीं करना उनका इंतज़ार।


बस

अब आप ही बताओ

क्या यह भी होता है

पहला प्यार

जिससे मिलने का हो

उम्र भर इंतज़ार ....


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