बिछुड़ती परम्पराएँ
बिछुड़ती परम्पराएँ
बिखरती परम्पराओं और
आधुनिकता के स्पर्श में
अपेक्षाओं का भ्रम क्या करेंगे।
इस लिए लहरों पर जीने की
हो अगर ख्वाहिश
तब अपनी यात्रा में जरा संभलना।
नदी की सीमाएँ हैं
उसके किनारे मिलना सागर में
उसकी है मंज़िल।
फिर भी लहरों पर जीने की
हो अगर चाहत
अपेक्षाओं में किनारों को मत ढूँढ़ना।
चलते-चलते अपनी पहचान के लिए
हवाओं के नाम
कोई गीत गुनगुनाना
और फिर दीया बन,
रोशन मंझधार करना
हवाओं के नाम बस
कोई पैगाम ही करना।।
