क्या तारीफ़ करुँ?
क्या तारीफ़ करुँ?


क्या तारीफ़ करुंँ तेरे कजरारे नैनों की,
तेरे नैनों में मेरी तस्वीर दिखाई देती है,
तेरी नज़र से घायल होना है ओ सनम,
तेरे नैनों के आईने में मुझे रहना है।
क्या तारीफ़ करुँ तेरे गुलाबी होंठों की,
तेरे होंठों से शब्द की सरिता बहती हैं,
मैं शब्दों को कलम में उतारूंगा ओ सनम,
मुझे तेरे इश्क की गज़ल लिखनी हैं।
क्या तारीफ़ करूँ तेरे बेशुमार हुस्न की,
तेरा हुस्न मुझ को दीवाना बनाता हैं,
मैं तेरे हुस्न में मदहोश बनुंगा ओ सनम,
मुझे चांद और सितारों को शरमाना हैं।
क्या तारीफ़ करुँ तेरी मस्त अदाओं की
जीसे देखकर हम रोम रोम लहराते हैं,
तू जन्नत से आई हुई परी हैं ओ सनम,
"मुरली" तेरी बांहों में सिमटना चाहता हैं।