क्या से क्या है गया..
क्या से क्या है गया..
क्या हो गई ये ज़िंदगी सब होते हुए भी
कोई खुश नहीं
हर जगह सिर्फ भय सा लग रहा है
सब से दूर हो गये हैं हम
कभी कभी सोचती हूँ मैं
हमारे पास खाने के लिए हैं
लेकिन उनका क्या होगा
जो रोज कमाते थे खाते थे
सड़क के किनारे अपने ठेले लगाकर
अपने परिवार का गुजारा चलाते थे लोग....
आज कोई जाता नहीं होगा
उनके पास डरते होंगे लोग
जो रोज कमा कर भी नहीं भर पाते थे पेट
ऐसे बहुत होंगे जो पता नहीं
कैसे होंगे क्या कर रहे होंगे लोग
लोग जैसे भी थे खुश थे लोग।
दूर जाकर भी खुश थे लोग
इस बीमारी ने क्या से क्या कर डाला
सबको बदल डाला
आज लोग मर रहे हैं इस बीमारी से
लेकिन वो भी पल भी आयेगा
जब बहुत से लोग मरेंगे भूखमरी
और बेरोजगारी से.....