Shalini Tripathi
Tragedy
कभी मन करता है
खुद से दूर चली जाऊँ,
इसलिए नहीं कि में दुखी हूँ
इसलिए नहीं मैं ग़ुस्सा हूँ
इसलिए कि मुझे खुद को समझने की कोशिश है!
माँ
कारगिल दिवस
खुद को समझना
क्या से क्या ...
बचपन
पापा
ख़ुद की सोच
मैं ग़लत नहीं
अपना पराया
कैद है हर एक इंसान जैसे अपने ही बदन में। कैद है हर एक इंसान जैसे अपने ही बदन में।
सड़क किनारे एक, मजबूर अमीर को देखा। रोटी के लिए बिकते हुए किसी ज़मीर को देखा। सड़क किनारे एक, मजबूर अमीर को देखा। रोटी के लिए बिकते हुए किसी ज़मीर को देखा।
चली पथिक गली वह मंजुकली देखा भिक्षुक कंकाल खड़ा।। चली पथिक गली वह मंजुकली देखा भिक्षुक कंकाल खड़ा।।
भले न मिले मुझे पूरी मजदूरी, फिर भी न रखता मैं किसी से दूरी। भले न मिले मुझे पूरी मजदूरी, फिर भी न रखता मैं किसी से दूरी।
अभी न समझे तो हो जायेगी देर मौत नाचेगी सरेआम होंगे लाशों के ढेर। अभी न समझे तो हो जायेगी देर मौत नाचेगी सरेआम होंगे लाशों के ढेर।
मेहनत की थकान है इतनी गहरी नींद सोये कामगार। मेहनत की थकान है इतनी गहरी नींद सोये कामगार।
कहीं मुँह पे पट्टियां किसी से दूर हैं रोटियाँ कहीं मुँह पे पट्टियां किसी से दूर हैं रोटियाँ
उन हरे भरे पेड़ों के प्यार को और उनकी छाँव को भुला कर धूल से काला कर दिया है..... उन हरे भरे पेड़ों के प्यार को और उनकी छाँव को भुला कर धूल से काला कर दिया है.......
मैं अब मजबूत हो गया, एक पल ऐसा आया, जब मैं मशहूर। मैं अब मजबूत हो गया, एक पल ऐसा आया, जब मैं मशहूर।
हम सब हैं मज़दूर यहां पर सब दिन भर करते हैं काम। हम सब हैं मज़दूर यहां पर सब दिन भर करते हैं काम।
मैं एक, टूटे शीशे की आरी हूं मैं एक भिखारी हूं मैं एक, टूटे शीशे की आरी हूं मैं एक भिखारी हूं
जो रोक ले इसे प्रारंभ में ही तो बस्ते में सिर्फ भरा हो अभिमान। जो रोक ले इसे प्रारंभ में ही तो बस्ते में सिर्फ भरा हो अभिमान।
न राष्ट्र के लिए भक्ति बाकी है तो बस बंटवारा। न राष्ट्र के लिए भक्ति बाकी है तो बस बंटवारा।
उठ खड़ा हो, फिर चलता, कहीं "दुत्कार" तो कहीं "दया का पात्र" बनता उठ खड़ा हो, फिर चलता, कहीं "दुत्कार" तो कहीं "दया का पात्र" बनता
सच को तमीज ही नहीं बात करनेे की, झूठ को देखो कितना शोर मचाता है, सच को तमीज ही नहीं बात करनेे की, झूठ को देखो कितना शोर मचाता है,
वरना तुम्हारा नामो निशान मिट जाता भूगोल से, इसका तुम्हें बोध नहीं। वरना तुम्हारा नामो निशान मिट जाता भूगोल से, इसका तुम्हें बोध नहीं।
दुनिया की कैसी ये रीति है जिसके पास सब कुछ है उसे सब देते हैं। दुनिया की कैसी ये रीति है जिसके पास सब कुछ है उसे सब देते हैं।
चले थे जो घर से, घर को ख़ुशियाँ देने को, ख़बर दिया उन्होंने मौत पे उनके रोने को चले थे जो घर से, घर को ख़ुशियाँ देने को, ख़बर दिया उन्होंने मौत पे उनके रोने ...
पहले थे माँ के सारे दिन, अब बस साल के एक दिन से निपटारा कर लिया ! पहले थे माँ के सारे दिन, अब बस साल के एक दिन से निपटारा कर लिया !
जिनके दुख से रिसती रहती है नदियों- सी पीर जाता जहां थकान मिटाने मेरा तप्त शरीर जिनके दुख से रिसती रहती है नदियों- सी पीर जाता जहां थकान मिटाने मेरा तप्त शर...