क्या ख़ता हुई
क्या ख़ता हुई
ऐसी क्या ख़ता हुई हमसे ऐ ख़ुदा!
जो तू भी हमसे हुआ है ख़फ़ा
किस को कहूँ अपनी व्यथा
यहाँ कोई नहीं सुनता दर्द भरी दास्ताँ
क्या कमी हुई इबादत में ऐ ख़ुदा
जो तू भी मुझसे तोड़ रहा है रिश्ता
मेरी एक ज़िद है रब से गर है ये ख़ता
तो माफ़ कर देना हूँ मैं नादां।
