क्या चाहती हैं लड़कियाँ
क्या चाहती हैं लड़कियाँ
कोमल स्वभाव, मीठी आवाज़ लिए,
घर आँगन में चहचहाती हैं लड़कियाँ।
खुशियाँ बाँटती फ़िरती हैं,
सूने घर में रोशनी सी झिलमिलाती हैं लड़कियाँ।
न धन की न दौलत की चाह रखती हैं,
बस प्यार के दो मीठे बोलों के लिए
कसमसाती हैं लड़कियाँ।
सबको जी भर कर प्यार देतीं है,
फ़िर भी परायी कहलाती है लड़कियाँ।
कोई अपमान करता है,
तो कोई खेल जाता है अस्मिता से,
मुट्ठी में भिंची तितली सी फड़फड़ाती हैं लड़कियाँ।
हथेली भर देकर एहसान जन्मों का चढ़ा देते हैं उनपर,
अपने ही घर से विदा कर दी जातीं हैं लड़कियाँ।
श्रृंगार से लादकर गुड़िया सी सजी,
संस्कारों के बोझ तले तिलमिलाती हैं लड़कियाँ।
सबका खुद से ज्यादा ध्यान रख,
खुद को कुर्बान कर देती हैं,
पर अपने लिए उम्र भर
कहाँ कुछ कर पाती हैं लड़कियाँ।
झूठी तारीफ़, झूठी उम्मीद,
झूठे बंधन, झूठमूठ के अपनों के बीच,
न जाने कितने झूठे रिश्ते निभाती हैं लड़कियाँ।
कितने ही दर्द सीने में छुपा कर,
कितनी ही चोटों को खुद मलहम लगा कर,
दूसरों को खुशी देने को मुस्कुराती हैं लड़कियाँ।
अभावों के बीच, धन दौलत, ऐशो आराम से परे,
तुम्हें साथ खड़ी दिख जाती हैं लड़कियाँ।
अल्प सुविधाओं के बीच जीती हैं ताउम्र,
फिर भी पूछते हैं क्या चाहती हैं लड़कियाँ !
उन्हें अपनी सोच के दायरे से मुक्त करो बस,
दम्भ की जंज़ीरों में कैद अब नहीं रह पाती हैं लड़कियाँ।
गला न घोटकर उनकी ख्वाहिशों का,
बंदिशों से आज़ाद करके देखो,
खुले आसमान में चिड़िया सी उड़ जाती हैं लड़कियाँ।
जानती हैं उनसे तुम्हारी इज़्ज़त जुड़ी है,
वक़्त आने पर चील भी बन जाती हैं लड़कियाँ।
ज्यादा कुछ नहीं, बस थोड़ी इज़्ज़त, थोड़ी कद्र,
थोड़ी हिम्मत, थोड़ी आज़ादी मात्र ही चाहती हैं लड़कियाँ।।