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Abhishek Gaur

Fantasy

4  

Abhishek Gaur

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क्या ऐसा भी होता होगा?

क्या ऐसा भी होता होगा?

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क्या ऐसा भी होता होगा ?

सब कुछ पाने को कोई चलता होगा,

हर दिन नया सपना पलता होगा,

दूर कहीं काँटों के बीच,

कोई फूल भी खिलता होगा।


उस ओर जब सूरज ढलता होगा,

दिन का उजाला भी घटता होगा,

सूरज की कमी भुलाने,

चाँद आशियाने से निकलता होगा,

क्या ऐसा भी होता होगा ?


इनकी निगरानी भी कोई करता होगा ?

ठीक समय से ढल जाये सूरज,

और समय से अँधेरा होगा,

ऐसा कैसे होता होगा ?

क्या इनके भी आने जाने का समय कोई लिखता होगा ?

कभी लेट क्यों नहीं ये होते ?

या कभी देर तक भी नहीं सोते,

कोई तो घर इनका भी होता होगा।


क्या ऐसा भी होता होगा ?

अदला बदली होती हो दोनों में,

सूरज निकले रात में और,

चाँद, दिन में निकलता होगा,

कभी तो समय बदलता होगा ?


कभी दिन हो जाये लम्बा और

चाँद सोता होगा,

या कभी यूं हो सूरज मनाये छुट्टी और

चाँद ड्यूटी पर होता होगा ।


क्या ऐसा भी होता होगा ?

दूर कहीं कोसों दूर,

कोई और भी शहर होता होगा,

हम हों उनके जैसे और

वहाँ कोई हमसा होता होगा ।


क्या ऐसा भी होता होगा ?

क्या ऐसा भी होता होगा ?

चलो चलें अब वहीं चलकर,

जहाँ भी ऐसा होता होगा,

जहाँ भी ऐसा होता होगा ।



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