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Abhishek Gaur

Romance

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Abhishek Gaur

Romance

तेरी याद विरह में आती है

तेरी याद विरह में आती है

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"तन्हा बैठा ज़मीन पर,

अब ख़टिया नहीं सुहाती है,

दिन भी भारी भारी हैं

और निशा (रात) भी याद दिलाती है।


नीर बहे नैंनों से,

हँसी कहाँ अब आती है,

दशा क्या समझाऊँ अपनी,

जब याद विरह में आती है।


प्यास नहीं अब कुछ पीने की,

और भूख नहीं सताती है,

रह रह कर रो लेता हूँ,

जब याद विरह में आती है।


अपनी सुध नहीं अब मुझको,

बस तेरी याद सताती है,

व्यथा कैसे समझाऊँ मन की,

जब याद विरह में आती है।


मुझसे तेरा और तुझसे मेरा,

यूँ ही बिछड़ जाना,

कैसे संम्भव हुआ यह,

समय का निष्ठुर बन जाना।


विषमय जीवन जी रहा हूँ,

तू भी कहाँ हँसती होगी,

जीवन है बड़ा महँगा महँगा,

और मृत्यू हो गई सस्ती।


पल पल अब तो रह गया रिक्तपन,

नहीं रहा वो अपनापन,

आँसू बहते आँखों से,

रह गया है केवल सूनापन।


नम रहती हैं पलकें मेरी,

और हृदय संग में रोता है,

यही दशा बन जाती है,

जब याद विरह में आती है।


तेरी याद विरह में आती है,

तेरी याद विरह में आती है।।


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