उस दौर की बात करता हूँ
उस दौर की बात करता हूँ
दोस्तों एक हिस्सा जीवन का ऐसा भी होता है जिसे आप बार बार जीना चाहते हैं आज मैं उन्हीं दिनों को याद करते हुए वर्तमान समय में शिक्षा के स्वरूप को देख कुछ विचलित सा हूँ और तभी मैं-
"उस दौर की बात करता हूँ"
कभी अपनी तो कभी
किसी और की बात करता हूँ,
आज इस ज़माने में,
मैं उस दौर की बात करता हूँ ।
घर से कुछ दूरी पर एक
शिक्षा का मंदिर होता था,
चालीस बच्चों का समूह उस मंदिर के अंदर होता था,
उस कक्षा में जीवन के संस्कार पढ़ाए जाते थे,
संस्कार पढ़ाने के बाद, जीवन में वैसे आचरण कराए जाते थे।।
व्यापार के इन शहरों में
मैं कहीं और की बात करता हूँ,
रहता हूँ आज में फिर भी
"उस दौर की बात करता हूँ" ।।
जो प्रथा थी अतीत के चलन में उससे
फल वर्तमान में मिलते हैं,
उजड़ना था जिन बगीचों ने,
आज फूल उन्हीं में खिलते हैं।।
बदला है आज और शिक्षा भी बदल गई,
जो मंदिर हुआ करते थे शिक्षा के,
वो केवल इमारतें बन गई,
संस्कारों के जाते जाते शिक्षा भी मिट गई,
फैलना था जिसने जल थल आकाश में,
वो किताबों तक सिमट गई ।।
लक्ष्य भी अब सबके पैसा हासिल करने के हैं,
मेहनत, संकल्प और निष्ठा भी अब केवल बातें करने के हैं,
श्रद्धा, भक्ति और विश्वास जो गुरु में होता था,
छात्रों का हर प्रयास कुछ करने का होता था,
कहाँ खो गये वो दिन और कहाँ खो गये सब व्यवहार,
गुरु नहीं हैं समर्पित और खो गये छात्रों के संस्कार ।।
बस यही सब देखकर मैं,
कभी अपनी तो कभी
किसी और की बात करता हूँ,
आज इस ज़माने में,
मैं उस दौर की बात करता हूँ
मैं उस दौर की बात करता हूँ।।