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नवल पाल प्रभाकर दिनकर

Drama Tragedy

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नवल पाल प्रभाकर दिनकर

Drama Tragedy

कविताएं और दहेज

कविताएं और दहेज

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मैं भी कितना मूर्ख

आपको पैदा किया,

पाला पोशा बड़ा किया

पर अब रोना है आता

जब आपको अपने

कांधे से बडा हूँ पाता।


आपकी जवानी मुझे

अन्दर से निचोड हैं देती

सारी ममता ह्रदय में जो थी

आँखों के रास्ते बाहर है आती

पर मैं कर भी क्या सकता हँू

जब तक कोई वर ना लायक मिले

ऐसे कैसे किसे मैं सौंप दूँ

मन है मेरा दुविधा में

आप तो शर्माशर्मी कहती नही

पर मैं भी क्या अंधा हूँ

जो इतना भी ना देख सकूं

कि मेरी इतनी सारी जवां बेटियां


बैठी हैं वर्षों से घर में

इनकी जवानी धीरे-धीरे

लुप्त सी होती जा रही है।

चेहरे की लालिमा भी अब तो

फिकी जैसे पडने लगी है।

पर मुझे तुम माफ करो

मैं लाचार हूँ कुछ करूं कैसे ?

मैं बेकार हूँ

दहेज नही दे सकता

यही तो दुराचार है ।


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