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Reena Devi

Drama

4.2  

Reena Devi

Drama

कुटिल किन्तु

कुटिल किन्तु

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224


बीच रास्ते आ किन्तु ने,

कुटिलता अपनी दिखलाई।

हुई इतिश्री वहीं कार्य की,

गति न उसमें आ पाई।


वर्षों से चले भूमि विवाद की,

सुनवाई का दिन आया।

साक्ष्य सभी पक्ष में देख मैं,

तनिक न उससे घबराया।


लगा विजयश्री गले मेरे ही

विजय हार पहनाएगी,

छोड़ हाथ मेरा कभी न वो

प्रणय निवेदन ठुकराएगी।


देख सम्मुख आता किन्तु को

उसने निष्ठुरता दिखलाई।

हुई इतिश्री वहीं कार्य की,

गति न उसमें आ पाई।


संतप्त उदर पीड़ा से इदानीम्,

स्वास्थ्य लाभ मैंने पाया।

पाकर सहसा भोज निमन्त्रण,

मन प्रफुल्लित हो आया।


देख नाना पकवान सामने,

काबू न खुद पर रख पाया।

भूल गरिष्ट भोजन परामर्श ,

मोदक तुरन्त उठाया।


लिया ग्रास मुख तभी किन्तु ने,

मन वैद्य सलाह याद दिलाई।

हुई इतिश्री वहीं कार्य की

गति न उसमें आ पाई।


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