कुटिल किन्तु
कुटिल किन्तु
बीच रास्ते आ किन्तु ने,
कुटिलता अपनी दिखलाई।
हुई इतिश्री वहीं कार्य की,
गति न उसमें आ पाई।
वर्षों से चले भूमि विवाद की,
सुनवाई का दिन आया।
साक्ष्य सभी पक्ष में देख मैं,
तनिक न उससे घबराया।
लगा विजयश्री गले मेरे ही
विजय हार पहनाएगी,
छोड़ हाथ मेरा कभी न वो
प्रणय निवेदन ठुकराएगी।
देख सम्मुख आता किन्तु को
उसने निष्ठुरता दिखलाई।
हुई इतिश्री वहीं कार्य की,
गति न उसमें आ पाई।
संतप्त उदर पीड़ा से इदानीम्,
स्वास्थ्य लाभ मैंने पाया।
पाकर सहसा भोज निमन्त्रण,
मन प्रफुल्लित हो आया।
देख नाना पकवान सामने,
काबू न खुद पर रख पाया।
भूल गरिष्ट भोजन परामर्श ,
मोदक तुरन्त उठाया।
लिया ग्रास मुख तभी किन्तु ने,
मन वैद्य सलाह याद दिलाई।
हुई इतिश्री वहीं कार्य की
गति न उसमें आ पाई।