कुंडलिया : ’महंगाई’
कुंडलिया : ’महंगाई’
सुरसा सी बढ़ने लगी, महंगाई हर रोज।
भाव बढ़े दिन रैन ये, कटन लागरी गोज।।
काटन लागरी गोज, गैस या हुई हजारी।
हुए टमाटर लाल, हुई महँगी तरकारी।।
डीजल अर पेट्रोल, देख यो सबनै घुरसा।
महंगाई की चाल, बढ़ी जनु बढ़ती सुरसा।।