कुदरती भुट्टा
कुदरती भुट्टा
भुट्टा नाम सुनते ही
हमारे जहन में पीले रंग की
आकृति उभर आती है
जिसके दाने पंक्ति बद्ध रूप में
हमारा मन मोह लेते हैं
जब हम गर्मी की छुट्टियों में
अपने नाना नानी के घर जाते थे
तब भी वे हमे लुभाते थे
और आज स्वयं हमारी लड़की
के बच्चे हमारे यानी
अपने नाना नानी के घर आते हैं
तब वे भी भुट्टे को देखकर
मचल जाते हैं जमाना बदल गया
मगर भुट्टे
आज भी वैसे के वैसे ही हैं
न रंग बदला न स्वाद
भुट्टे का मौसम आते ही
हमें कॉलेज के दिन याद
आ जाते है जब
अपने पसंद का भुट्टा लेकर उसे
अपनी नजरों के सामने सिकवाते
और स्वाद बढ़ाने के लिए
उस पर नींबू भी घिसवाते थे
कभी कभी यह भी होता कि भुट्टे
के चक्कर में अगला पीरियड भी
मिस हो जाता था मगर
भुट्टा तो तब भी हम
अपनी ही शर्तों पर खाते थे
शादी के बाद भी भुट्टे का
घर में आना जारी रहा
एक दिन सुबह
आफिस के लिए घर से
निकलते निकलते पत्नी ने कहा
शाम को जल्दी आना
उत्सुकता वश मेने पूछ लिया
क्यों, कहने लगी
आज भुट्टे आए हैं इसलिए
किस दूँगी में मुस्कुरा दिया
और जल्दी जल्दी
अपना काम खत्म कर
घर पहुंच गया व प्रश्न वाचक रूप
में पत्नी की और
हाथ का इशारा किया
वह बोली पहले हाथ मुँह धो लो
में अचरज़ में पड़ गया
भला इसमें हाथ मुँह धोने का क्या काम
मगर कुछ पाने के लिए
कुछ खोना भी पड़ता है
इसे ब्रह्म वाक्य मानकर
हाथ मुँह धोकर में
कमरे में आ गया
सोफे पर बैठा ही था कि
पत्नी के आने की पदचाप
सुनाई देने लगी
उत्तेजना का असर चेहरे पर
साफ साफ दिखाई देने लगा
दरवाजे को ठेलते हुए पत्नी ने
टी टेबल पर पानी का ग्लास रखा
और बड़ी कटोरी मेरे हाथ में
पकड़ाते हुए बोली
यह लो किस
तो तुमने सुबह इस किस का
कहा था तो तुम क्या समझे थे !
ओ माई गॉड !
पत्नी हाथ मे भुट्टा लेकर
शरारती अंदाज़ में मुस्कुरा दी।