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Dayasagar Dharua

Romance

5.0  

Dayasagar Dharua

Romance

कुछ तो इशारा है

कुछ तो इशारा है

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ये आँखें

सोना नहीं

जागना चाह रहे हैं

और सपनें भी

जागी जागी पलकों पे

अपना वजूद मांग रहे हैं

आजकल आँखों के

नज़रिये भी बदल गये हैं

ये रात ये शाम ये सुबह

पहले से कहीं ज्यादा भा रहे हैं

कुछ तो इशारा है

के उससे मिलने के बाद

ये धड़कनें बहक रहे हैं

किसी चुम्बक की ओर

खिंचे चले जाने वाले

लोहे के टुकड़े जैसा

रातों मे तारों की ओर

मेरी आँखें खिंचे जा रहे हैं

और एकटक निहार रहे हैं

नजरों के हटने का

कोइ गुंजाइश ही नहीं उठ रही

जैसे काली रात की कालीन पे

यौवन का शतरंज बिछा हुआ है

जहाँ मेरे खिलाफ़

चाँदनी बिखेरती चाँद है

हर तारें जिसके प्यादें हैं

जो शायद

मुझे पुकारते ललचाते

प्यार की एक दाँव खेलने को

इशारा कर रहे हैं।


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