कुछ न कुछ जरूर होता
कुछ न कुछ जरूर होता
कभी आंखें खाती हैं धोखा,
कभी क़सूर कानों का होता है,
कभी अल्फ़ाज़ों की जालसाज़ी,
कभी अपना ही शुरूर होता है।
घायल होते हैं रिश्ते वहां,
जहां ऐसा ही दस्तूर होता है,
"यूं ही नहीं बिखरते रिश्ते",
कुछ न कुछ ज़रूर होता है !
अपना भी अपना लगता नहीं,
जब ग़ैरों पे ऐतबार होता है,
आग लगा रहा है कोई चमन में,
मगर वो नज़रों से दूर होता है।
"यूं ही नहीं बिखरते रिश्ते",
कुछ न कुछ ज़रूर होता है !
ज़िद भी कर देता है कमज़ोर,
जब दिल मग़रूर होता है,
हार जाता है वो अपनों को ही,
जिसे ख़ुद पे ही ग़ुरूर होता है।
"यूं ही नहीं बिखरते रिश्ते",
कुछ न कुछ ज़रूर होता है !
