कुछ लम्हे फसाने बन गए
कुछ लम्हे फसाने बन गए
जीते रहे अपनी जिंदगानी
बस कुछ पल याद रह गए।
दिलाकर याद नियमे मोहब्बत के
कुछ लम्हें फसाने बन गए।
हौसला देती चुनौतियों को,
किस्से हिम्मत के बन गए।
सुकून दे गया कोई भूला पल,
कुछ फसाने घाव दे गए।
कहते रहे हम अपनी कहानी,
पर फसाने तुम्हारे हो गए।
लिखे जो साज हमने अपने,
वो नगमे तुम्हारे हो गए।
पत्थर होती इस बस्ती में
जज्बात पत्थर के हो गए।
जो जान बची थी शब्दों में,
देख तुम्हें वे मौन हो गए।
मांगी जो मुट्ठी भर खुशियां,
मेहमान हम दर्द के हो गए।
जो चाहा दरिया प्रेम का,
अश्कों के साथ वह सूख गए।
जीने चले थे जी भर के,
रास्ते बेगाने हो गए।
जो देखी आती मंजिल जब,
थककर कदम वही पर सो गए।
मैंने ढाई आखर बोल दिए,
उन शब्दों को तुम सुन ना सके।
उलहाने दिए जो झूठे से,
वह याद तुम्हें हर बार रहे।
चाहत में उजाले की
वो किस्से भी ख्वाब बन गए।
जो गुजरे साल महीने यादों के,
वो फसाने भी सिमट गए।
नहीं मैं महरुम तुम्हारे ख्वाबों से,
जो हमारे ख्वाब फसाने बन गए।
जो हमने उठाए सवाल तो तुम
जीने के नाजो नियम याद दिला गए।