।। कुछ झूठ पका कर लाया हूँ ।।
।। कुछ झूठ पका कर लाया हूँ ।।
कुछ झूठ पका कर लाया हूँ,
आज जला कर सच को अपने,
तुम खाकर स्वाद बता देना बस,
क्या इनके ही देखे थे सपने।।
कुछ टुकड़े बादल के लाया हूँ,
लडके चुंधियाती बिजली से,
बिखरा कर जुल्फें बतला दो,
क्या इनमें सावन के दिन अपने।।
भरा सितारों थाल हूँ लाया,
चांद का टुकड़ा भी डाला है,
बस भर कर मांग बता देना,
जब पहरे प्यार के लगे छंटने।।
टुकड़ा भी तो इस दिल का,
तेरे कदमों पे है डाल दिया,
इस पर कुछ फूल चढ़ा देना,
जिस दिन लगे प्यार मेरा बँटने।
कुछ झूठ पका कर लाया हूँ,
आज जला कर सच को अपने।।