Kanchan Prabha

Abstract

4.8  

Kanchan Prabha

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मदिरा का बाजार

मदिरा का बाजार

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हे मानव ये तेरा कैसा स्वरूप है

सचमुच ही ये कलयुग शायद

खुद को कैसे तोल रहे हो असुरों के आधार में 

छूट मिली तो टूट पड़े हो मदिरा के बाजार में 


कोई एक रोटी को तरसे

कोई तरसे मातृभूमि को

आज सड़क पर भीड़ है उमड़ी

जो रहते बेहतर घर बार में 

छुट मिली तो टूट पड़े हो मदिरा के बाजार में 


किसी की नौकरी खतरे में है

कोई काम के लिये लाचार है

कितना खतरा कितना मुश्किल है 

क्या उन्हें पता रोजगार में 

छुट मिली तो टूट पड़े हो मदिरा के बाजार में 


भयावहता को तुने जाना नहीं 

मौत को भी पहचाना नहीं

क्या तुमने कोरोना की खबर

पढ़ा न आँकड़ा अखबार में 

छुट मिली तो टूट पड़े हो मदिरा के बाजार में 


खोल दूकान मदिरा की

लगता कोई एहसान हुआ

लॉकडाउन में जो रोक सके

हिम्मत नहीं सरकार में 

छुट मिली तो टूट पड़े हो मदिरा के बाजार में 


घर पर रह कर सुरक्षित रहना

कोरोना महामारी से लड़ना

क्या कोई खोट बची है अब भी

तुम्हारे अंतरमन के एतबार में 

छुट मिली तो टूट पड़े हो मदिरा के बाजार में ।



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