STORYMIRROR

Leena Jha

Abstract

4  

Leena Jha

Abstract

मैं नज़्म नहीं लिखती

मैं नज़्म नहीं लिखती

1 min
239

मैं नज़्म नहीं लिखती

मैं बस चंद शब्दों को

लिख देती हो कोरे कागजों पर

जिनमें दिख जाती है नज़्म

टूटे दिलों को


मैं नज़्म नहीं लिखती

मैं रंग भरती हूं टूटे कुचले ख्वाबों में

कुछ रंगीन शब्दों से

ठूंठ हो गए रिश्तों की


लिखती हूं कहानियां

जिसे पढ़ती हैं चंद जनानियां

अपने हिस्से के ठूंठ हूए रिश्ते कि खोज में


मैं नज़्म नहीं लिखती

मैं लिखती हूं किस्से 

अपनों से बिछड़ अपने की

जो खोये हैं कहीं आसपास


जिन्हें ढ़ूढ़ती है निगाहें 

और लौटती हैं खाली हाथ

मैं शब्दों से गर्म कंवल बुनती हूं

उन ठिठूरते रिश्तों के लिए


मैं नज़्म नहीं लिखती

मेरी पेंसिल मिलती है जब पन्नों से

मिल गले दोनों

करते हैं बातें अपने दरख़्त से बिछड़ने की

वो बातें बन जाती है कहानियां


अपने अपने दरख़्त से बिछड़े लोंगो कि

जिसे बाचंती है जाने कितनी पीढीयां

मैं नज़्म नहीं लिखती

मैं लिखती हूं तेरी मेरी कहानियां।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract