सपने
सपने
सपने तो बस सपने हैं
कब पूरे हो पाये हैं...
जब पुछा उससे मैंने
क्या स्वप्न देखा है तुमने?
आंखों में भोर की उजास लिए
बच्चों ने भरपेट खाई है रोटी
और सोये हैं वो बिन आंसु के
बस इतना स्वप्न देखा है मैंने
पर सपने तो बस सपने हैं
कब पूरे हो पाये..
पनियाई आंखों से कह गया वो मेरे अंतस में...
कोई घर भी तो होगा सपने में ?
बस ठौर हो कोई अपने सर पर
फूटपाथ पर ना लेटे हों बीबी बच्चे
बस इतना सा ही सोचा है
कोई बंगला नहीं सजाया है
पर सपने तो बस सपने हैं
कब पूरे हो पाये हैं...
उदास हंसी भरे चेहरे से वो मन को कह गया मेरे...
बच्चे मेरे भी कुछ बन जायें
जिंदगी ना बोझ हो उनके कांधे पर
जैसे ढ़ोया है हमनें ,
ना ढ़ोयें वो भी अपने कांधों पर
धुल जाये उनकी भी हंसी
उन नर्म मुलायम सपनों से
बस इतना ही स्वप्न सजाया है
पर सपने तो बस सपने हैं
कब पूरे हो पाये हैं....
अपने मेहनतकश चेहरे से
कई प्रश्न छोङ गया वो मुझमें!