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Leena Jha

Abstract Others

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Leena Jha

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आँचल

आँचल

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हां मैं आँचल हूं

नहीं फर्क पड़ता मुझे

मेरे सुती या मखमली होने से

मैं सफेद हूं या हूं लाल

इससे भी कोई अंतर नहीं पड़ता


पड़ता है फर्क मेरे विस्तार से

फैलाती हूं मैं जब इसे अनंत

पड़ता है तब फर्क

सारे जगत पर

मैं पिलाती हूं सफेद अमृत


ले इसका अनंत छांव

पालती हूं संतति 

पिला अपने ममत्व को 

दे दुग्ध का रूप

तब पड़ता है फर्क मुझे


नहीं पड़ता है फर्क मुझे

हो सुती या मखमली 

जब पोंछ लेती हूं 

बहते आंसू इन आचंल से

सुखा देती हूं 


जब बहते घाम इसके छोर से

घुप में छांव सर पर बन 

कबंल बन जाती हूं जब सर्द रातों में

फर्क पड़ता है तब मुझे

जब संतति मेरी लिपटी हो इस आचंल से


नहीं पड़ता है फर्क मुझे

हो सुती या मखमली

उम्र के किसी भी दौर में

जब बन जाती है ये सुख की चादर

थके संतति के लिए


चैन से सो लेता है जब मन 

फिर बालक बन इसके छांव में

फर्क पड़ता है तब मुझे

हां बड़ा फर्क पड़ता है तब मुझे।


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