दो सुत हंसी
दो सुत हंसी
चौखट के अंदर आते ही
सरक गई
उसके चेहरे पर
चिपकी वो दो सुत हंसी
जिसे वो रोज
अपने चेहरे पर
चिपकाती है
सिंदूर बिंदी और लिपस्टिक के साथ
खुद को साबित करने
जब निकलती है घर से
दफ़्तर से लेकर
घर के सारे रिश्ते
हर जगह हर समय
कोशिश है उसकी
अपने आप को साबित करने कि
इस साबित के होड़ में
कब कहां कैसे
खो गई उसकी हंसी
जिसकी हंसी में
झरना खिलखिलाता था कभी
वही अब
तरसती है सुत सुत हंसी के लिए
माथे पर बल है
पर बढ़ जाता है
वो बल
चौखट के प्रवेश करते ही
वो नौ से छः बजे तक
उसका हिसाब भी देना है उसे
वो जवाब देते देते
खुद सवाल बन गई है
और इसी सवाल जवाब
के कशमकश में
उसकी हंसी हाशिये पर चली गई है
अब वो दो सुत की हंसी
पहचान बन गई है उसकी
जो वक्त बेवक्त सरक जाती है उसके चेहरे से