STORYMIRROR

Leena Jha

Abstract Others

3  

Leena Jha

Abstract Others

दो सुत हंसी

दो सुत हंसी

1 min
293


चौखट के अंदर आते ही

सरक गई

उसके चेहरे पर

चिपकी वो दो सुत हंसी

जिसे वो रोज

अपने चेहरे पर

चिपकाती है 

सिंदूर बिंदी और लिपस्टिक के साथ


खुद को साबित करने 

जब निकलती है घर से

दफ़्तर से लेकर 

घर के सारे रिश्ते

हर जगह हर समय

कोशिश है उसकी

अपने आप को साबित करने कि

इस साबित के होड़ में

कब कहां कैसे

खो गई उसकी हंसी

जिसकी हंसी में

झरना खिलखिलाता था कभी

वही अब 

तरसती है सुत सुत हंसी के लिए

माथे पर बल है

पर बढ़ जाता है

वो बल 

चौखट के प्रवेश करते ही


वो नौ से छः बजे तक

उसका हिसाब भी देना है उसे

वो जवाब देते देते

खुद सवाल बन गई है

और इसी सवाल जवाब

के कशमकश में

उसकी हंसी हाशिये पर चली गई है

अब वो दो सुत की हंसी

पहचान बन गई है उसकी

जो वक्त बेवक्त सरक जाती है उसके चेहरे से



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract