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Snehil Thakur

Abstract

4.8  

Snehil Thakur

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'मेरे दादाजी'

'मेरे दादाजी'

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एक ऐसा इंसान जो

है सीधा-सादा सा,

उनके न होने से ये

घर है निरर्थक सा,


उन्हीं से है पूरा 

ये परिवार,

उन्हीं से है

घर का आधार,

जिसने झूठ बोलना 

सीखा ही नहीं,


छल क्या है 

यह जाना ही नहीं,

पढ़ाई को जिसने 

रखा सर्वोपरि,

बाकी सब रह गई 

धरी की धरी,


फिर भी ध्यान हमेशा 

अपने बच्चों का,

फिक्र सभी के 

वर्तमान व भविष्य का,


माना सभी पोते-पोतियों 

को एक बराबर,

उनकी इसी छवि ने उन्हें 

बनाया है अमर,


उनके जैसा कोई 

मिलना है मुश्किल,

देवी-देवताएं भी कर

लो गर शामिल,


पूरे परिवार को रखा 

जीवन भर संभालकर,

अब बारी हमारी उॠण हो 

अपना कर्म अदा कर।


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