ये सरहदें
ये सरहदें
टुकड़ों में बांट दिया जिसने ,
हद्द से बड़ी हैं ये सरहदें !
जमीं का किया सौदा कभी ,
तो आसमाँ को भी बांट दिया !!
हर हद्द से गुजर जाती है क्यूँ ,
अनचाही ये सरहदें !
दिलों पर चल जाती हैं छुरी ,
जब खींचती हैं सरहदें !!
न जाने क्या क्या बांटेगी ,
अनजानी ये सरहदें !
नदिया-समुद्र ,धरती-अम्बर
तराजू में सब पड़े हैं ,
बचपन के खेल खेले साथ !
उन घरौंदों को भी उजाड़ती हैं ,
मन मानी ये सरहदें !!
न वक़्त आ जाए ऐसा की ,
परिंदों को मोड़ दे !
पवन पर कर अधिकार ,
छीन ले साँसों की भी आजादी !!
धर्म तो बंट चुके कब के ही ,
धर्मों ने देश भी बाँट दिए !
इंसानियत मिटने से पहले ,
तोड़ दो बेगानी ये सरहदें !!