"भीड़ में रहकर भी हम अकेले रह गये"
"भीड़ में रहकर भी हम अकेले रह गये"
फ़ेसबूक के पन्नों में भी हमारी मित्रता बढ्ने लगी !
अब कहाँ सीमित यहाँ क्षितिज के छोर को छूने लगी !!
हम ना सबको जानते हैं और ना उनको पहचानते हैं !
तस्वीर उनकी देखकर भंगिमाओं से उन्हें हम जानते हैं !!
दोस्त हम तो बन गये दीवारें भी खड़ी होती चलीं गईं !
ना कोई गुफ्तगू ना कोई पत्राचार बातें अपनी गुम हो गईं !!
टाइमलाइन में लिखने की शामत भला किसको आयी है !
यहाँ तो आउट ऑफ बाउड की तख्तियाँ लटकायी है !!
मेसेंजर में लाख अपनी बातें और व्यथाओं को लिख दें !
किसे फुर्सत है यहाँ पर आज कल गौर से ही इसे देख लें !!
मित्रता की भीड़ में हम इसतरह से अपने को तलाश किया !
लोगों के बीच पहुँच-पहुँच कर नए फिर से भरत- मिलाप किया !!