कुछ भ्रम ऐसे ही
कुछ भ्रम ऐसे ही
माँ जब तब बेटी को कहती रहती है,
"तुम सपनों की दुनिया से बाहर निकलो
और हकीकत की दुनिया में रहना सीखो"
और बेटी उनींदी आवाज में कहती है,
"माँ,इस सपनीली दुनिया में मुझे खोने दो
जिंदगी में कुछ भ्रम मुझे भी पालने दो
कुछ भ्रम मुझे सुकून देते हुए लगते हैं
जैसे मेरा यहाँ महफूज रहने का भ्रम
यह देश तो बुद्ध और महात्मा का है न?
यहाँ मैं आसमान को छू सकती हूँ
तितली सी यहाँ वहाँ उड़ सकती हूँ
माँ,रावण तो इस देश का नही था न?"
बेटी के सवाल को अनसुना कर बुदबुदाती है
अब 'बेटीयाँ क्या घर में महफूज है?
तितलियों के सूंदर पँख तुमने देखे होंगे
उनसे खेलते हुए लड़को को देखा होगा
जो भाग कर तितलीयों को पकड़ते है
और उनके रंगबिरंगी टूटे हुए पँखों को
जमा करने का खेल खेलते है.....'
