कटु, मगर सत्य है!
कटु, मगर सत्य है!
न तो प्रशंसा मुझे
गुब्बारे की तरह
फूला सकती है,
और न ही
समालोचना मुझे
अपने नज़रों से
गिरा सकती है!
वजह ये है कि
वक्त के इतने
अनचाहे घाव मिले
कि आज वो
नासूर बन गए हैं...!
यहाँ ऊँचे ओहदों पर
विराजमान लोगों के
आसमानी वादे सुने,
मगर वो सारे
सरासर झूठ के
रंगों में रंगे
नकली बातों का
विश्वासघात था,
और कुछ नहीं!
सही-गलत का
फैसला भी हो गया,
और हक़ीक़त से मैं
रुबरु हो गया...!
अब तो मैं<
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अपने दिल की
सच्चाई को तवज्जोह
दिया करता हूँ...
महज दिखावे की
किताबी बातों पर
और दकियानूसी ख्यालात पर
मैं हरगिज़ ध्यान नहीं देता...
यही तो वक्त का रंगमंच है,
जिसमें मैंने कई
तथाकथित दिग्गज नाट्याभिनेताओं को
अक्सर बड़ी कुशलतापूर्वक
अपना-अपना झूठा किरदार
निभाते देखा है...!
ये दास्तान-ए-ज़िन्दगी बड़ी
भूलभुलैया-सी लगती है...
इसलिए आपसे भी इल्तिज़ा है
कि आप भी इस तथाकथित
दुनिया की किताब को
पढ़ते वक्त थोड़ी
एहतियात बरतें...
कतई जल्दीबाज़ी न करें...
वरना...!!!