कटी पतंग और वह मासूम बेज़ुबान
कटी पतंग और वह मासूम बेज़ुबान
बिजली के तार से लटकी हुई,
वो एक कटी हुई पतंग ;
हो रही थी मांझा लगे धागे के
संग बहुत बदरंग ।
उस मांझा लगे धागे में,
उड़ते उड़ते उलझा एक कपोत ।
देख उसे एक टीस सी उठी दिल में,
कष्ट उसने पाया होगा अकूत ।
आंखो से निकले हुए उसके आंसू,
बयान कर रहे थे उसकी वेदना ।
ना जाने किस नौसिखिए निर्दयी ने,
जाने अनजाने दी होगी यातना ।
अपनी मौज मस्तियों में क्यूं,
जाने हम भुल जाते है हरदम ।
इन मासूम निरीह जानो को भी,
प्रकृति ने दिए है जीवन के रंग ।
प्रकृति सिर्फ इन्सानों से तो नहीं,
पशु, पंछी सभी इसी के अंग ।
किसने हक हमें है यह दिया कि,
हम छिनले इनसे प्रकृति का संग ।
देख रहा था मैं एकटक उसे,
अहसास करता हुआ उसकी पीर ।
इतनी पीड़ा हो रही थी दिल में,
मानो दिया हो किसीने सीना चीर ।
किसी हैवान की इस करतूत पर,
अगर सको तो दिल से सोचना जरा ।
अगर न रहेगें पशु पंछी इस जमीं पर,
तो निष्प्राण हो जायेगा जहां सारा ।
आओ सब मिलकर प्रण ले आज,
ना सताएंगे किसी प्राणी मासूम को ।
प्राणहीन होने से बचाएं सदा,
हमारी इस चहकती वसुंधरा को ।