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Shilpi Goel

Tragedy

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Shilpi Goel

Tragedy

कटाई

कटाई

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आज के युग में

ले रहा

जन्म

पाप ही पाप है,

इंसान खत्म हो रहा

धीरे-धीरे

अपने आप है।

इंसान

स्वयं दे रहा

धरा को

ऐसा अभिशाप है,

स्वर्ग है धरा

फिर भी यहाँ

नर्क का एहसास है।

चारों तरफ

इंसान के

मौत का

दरवाज़ा खुला है,

कदम-कदम पर

चीखे हैं,

जख्म अभी ताजा है।

करहा रहा

है इंसान

और दर्द में

अपने ही लोग हैं,

फिर भी

कर रहे

एक दूजे से

जानवरों सा बर्ताव है।

इंसान से अच्छे

जानवर हैं

जिनकी

आँखों में

आँसू हैं,

सोचने पर

मजबूर है धरा

क्या तुम

सच में इंसान हो।

 


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