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Beena Kandpal

Fantasy

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Beena Kandpal

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कशमकश, है ये एकांत

कशमकश, है ये एकांत

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कभी शून्य, तो कभी शतक

कभी संक्षेप, तो कभी विस्तार

कभी हमसफर, तो कभी बेखबर

कभी उर्वर, तो कभी ऊसर 

स्वयं का स्वयं से परिचय कराता है


ख्वाबों की दुनियां में घुमा लाता है

कल्पनाओं को घरौंदों में बसाता है

बीता वक्त बडा याद दिलाता है

दबे जख्मों को कुरेद सा जाता है

फिर उन्ही जख्मों पर मरहम भी लगाता है


कभी कुसुम, तो कभी पाहन 

कभी मुखर, तो कभी मौन

कभी सुधासिक्त, तो कभी विषात

आखों में नमी होठों पर मुस्कराहट

दिल में उमडतें ख्यालों की सकपकाहट


कभी सवालो की लड़ी, तो कभी ख्यालों की झड़़ी है

मन की भाषा, तन की बोली मे भेद बताता है

कभी क्षिति, तो कभी आकाश

कभी जुनूं, तो कभी सुकूं 

हर्ष के पीछे छिपा विषाद,


कभी नीरस, तो कभी सरस 

कभी सहेली, तो कभी पहेली 

आत्मा का परमात्मा से मिलन, है ये एकांत

बड़ा ही कशमकश, है ये एकांत।


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