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Beena Kandpal

Abstract

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Beena Kandpal

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ताजगी का अनुभव किया मैंने

ताजगी का अनुभव किया मैंने

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आज अरसे बाद देखा तुम्हें,

ताजगी का अनुभव किया मैंने।

याद आए, कुछ जिन्दगी के हिस्से,

कुछ अनसुलझे किस्से,

कुछ मीठी यादें,

कुछ हसीं पल

कुछ अजनबी अपने,

कुछ खुली आंखों के सपने,


कुछ अधुरे अहसास,

कुछ छिपे जज्बात,

कुछ अनबुने रिश्ते,

कुछ अधुरी कहानियां,

कुछ अनसुलझे सवाल,

कुछ बिन सवालों के जवाब,

संजोए थे मैंने तुम में।


कभी हंसी तो कभी अश्कों से भिगोया मैंने तुम्हें,

कभी गुस्सा तो कभी गीतों में फिरोया मैंने तुम्हे,

कभी घृणा तो कभी प्रेम से संजोया मैंने तुम्हें,

आज अरसे बाद देखा तुम्हें,

ताजगी का अनुभव किया मैंने।


मौन रहकर भी तुम मेरे दिल को टटोल जाती थी,

जब मैं होती एंकात तो बनती तुम मेरा साथ, पूछती मेरा हाल

फिर क्या, लब्जों की स्याही से मैं तुम्हें रंग दिया करती थी।

तुम में खोकर, खुद को पा जाती थी,

इक सकूं सा होता जब पास तुम होती।


आज तुम्हे देखकर, मेरी कलम उत्साहित है बड़ी,

जिन्दगी का नया हिस्सा लिखने को बेताब है बड़ी,

कहां से शुरू करू है ये कशमकश बड़ी।

पर दीवार पर नजर पड़ी, देखी जब मैने घड़ी

रख दिया तुम्हें वहीं, जहां थी तुम पड़ी।

आज अरसे बाद देखा तुम्हें............                      


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