क्रूरता मंजूर नहीं
क्रूरता मंजूर नहीं
देश की मानसिकता अब तो
दलदल में धंसी हुई है
दौलत-शोहरत की आग है
फिजाएं धुएं से भरी हुई हैं
उन जल्लाद खूनी हाथों को
कौन भला अब काटेगा
जब इज्जत का रखवाला ही
आंखों पर पट्टी बांधेगा
क्यों नहीं दहला दिल ठेकेदारों का
जब अबला नारी नंगी नोची गई
उनके दोगलेपन की हद तो देखो
हत्यारे को ही कुर्सी सौंपी गई
अब किससे कौन गुहार करे
कलयुग की द्रोपदी किसे पुकारे
कौन ढके तन इस अबला की
श्याम जो तुम गोलोक सिधारे
सत्ता खामोश है या मदहोश है,
अपनी शोहरत साबित करने में
किससे उम्मीद रखें अब नारी
क्या किस्मत है उसकी जलने में?
नहीं नार! यह क्रूरता मंजूर नहीं
शस्त्र तेरा, तुझे खुद बनना होगा
खड़ग उठा चंडी का रूप ले
अब दानव दल को मरना होगा
जो काली न बन सकी नार तू
कौन हतेगा जल्लादों को
अस्मत पर उठे जो हाथ काट दे
सीख दे अपनी औलादों को
एक विकल्प बचा है नारियों
आत्मरक्षा का कवच ओढ़ लो
खुद का कद हो इतना प्रशस्त
कि हैवानों की राह मोड़ दो
त्याग दे कायरता, सक्षम बन
छीन ले जननी का अधिकार
अब अपना अस्तित्व बचा ले
मिटा दे दुनिया से अंधकार
ए नार, तेरे कद के आगे
दुनिया को अब झुकना होगा
बलात्कार करने वालों का
तुझको ही वध करना होगा.....
@मणिपुर घटना
