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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Tragedy

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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Tragedy

कृष्ण सुभद्रा संवाद

कृष्ण सुभद्रा संवाद

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मत रो बहन सुभद्रे ,पावस सम अवनी मन भीग रहा ,

जीवन विषाद से जर्जित प्राण तन को ही अब भेद रहा ।


उत्तरा को दो जीवनदान , श्रांत क्लांत सी थकित मानिनी,

हर्ष विषाद दो पहलू हैं नश्वर जीवन के ये परम भामिनी ।


दूरागत ये क्रन्दन ध्वनि उत्तरा के मन को बेध रही ,

कैसा नियति रची कुचक्र चुभन हृदय को छेद रही ।


कितनी मादकता थी वीरता भरे उस धीर के वचनों में,

संचित अभिलाषा सिंचित काली-काली सर्पिल अलकों में ।


उलझ गया प्रेमी मन चपल भ्रमर सा बंद कमलकोश में ,

भर चली सिन्धु सरिता उस नव ब्याहता के रुदन में ।


विवशित वेदना हो विकल, विषाद रूप में सिसक रही ,

उन्मीलित नेत्र ,भयाक्रांत हिरणी सी दप्त सिंहनी विचल रही ।


मत रो बहन सुभद्रे ,पावस सम अवनी का मन भीग रहा ,

जीवन विषाद से जर्जर प्राण तन को अब भेद रहा ।



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