कर्ज
कर्ज
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आज मुद्दत बाद तेरे शहर में आया हूँ
चन्द हसरतें और ढेरों उम्मीद लाया हूँ
बागों में वही झूले, बाजारों में वही दुकानें
गाड़ियों का वही शोर, बेमौसम वही बरसातें
दूर खड़ा पीपल का वही पेड़
यूँ तो सब कुछ वैसा ही है
मगर, मगर ऐ मेरे दोस्त
तेरे चेहरे का रंग अब फीका पड़ गया है
या यूँ कहें तेरे धोखे ने तुझे बर्बाद कर दिया है
मेरी दुआ है खुदा से तुझे खुशियाँ बख्शे
जो मैंने किये हों कुछ अच्छे करम
उनकी नेमत तुझ पे बरसे
एक और कर्ज मैं उतार आया हूँ
आज मुद्दत बाद तेरे शहर में आया हूँ