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Bhavna Jain

Abstract

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Bhavna Jain

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खलिश

खलिश

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एक खलिश हमेशा दिल के कोने में दबी रही

ख्वाहिश वो जो थी अधुरी ही तुमसे लगी रही


काश तुम भी मुझे समझ पाते

उस प्यार को महसूस करा पाते

दिल की गहराईयों को छू पाते

सावन की बरसात में साथ आते

गालों की हसीं सिमटे होठों तक ही रही

एक खलिश हमेशा दिल के कोने में दबी रही


जानते हो तुम प्यार

प्यार सिर्फ जिस्मों का नहीं होता

प्यार सिर्फ कसमों का नहीं होता

प्यार तेरा या मेरा नहीं होता

प्यार कोई व्यापार नहीं होता

तुम्हारे काधें का सुकूं भर चाहत ये बनी रही

एक खलिश हमेशा दिल के कोने में दबी रही।


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