क्रेच
क्रेच
मुझे याद आती है वह औरत
जो बच्ची साथ लाती है
अपने काम पर
उठाती है रेत से भरे भारी तसले को
और सिर पर रखते हुए
एक नज़र से देखती है
भरी दुपहरी में पेड़ की छाँव में
रास्ते के किनारे सोयी बेटी को
उसे क्या पता बच्चों के क्रेच के बारे में
वह अपनी नज़रों के सामने
बेटी को महफ़ूज रखना चाहती है
इसके साथ ही ऑफिस जानेवाली
औरतों को भी मैं देखती रहती हूँ
क्रेच में मोटी रकम देकर रखती है
अपने दिल के टुकड़े को
औरत सड़क बनाने का काम करती हो
या किसी ऑफिस में बड़ी ऑफिसर हो
वह अपने स्टेटस का खयाल रखती है
मजबूरी की भी मजबूरी होती है
उसे क्लास की परवाह करनी होती है
और हैसियत की भी....